वर्तमान में जो हमारी अवस्था है.. वो निश्चित रूप से हमारे द्वारा अब तक की गई व्यवस्था का ही परिणाम है..
अवस्था अर्थात हालत.. दशा.. स्थिति..
शारीरिक अवस्था…
आर्थिक अवस्था…
मानसिक अवस्था…
सामाजिक अवस्था…
शारीरिक अवस्था को दुरुस्त रखने के लिए हमें व्यायाम.. खेलकूद.. दौड़ना.. चलना एवं पौष्टिक खानपान कि व्यवस्था रखनी अनिवार्य है..
अब यदि हम ऐसी व्यवस्था नहीं रखेंगे तो शारीरिक पीड़ा के दोषी हम ही तो हुए..
आर्थिक अवस्था को सुदृढ रखने के लिए हमें अच्छे से पढ़ाई .. नौकरी अथवा व्यवसाय या .. लाभकारी निवेश की व्यवस्था करनी चाहिए..
यदि ऐसा नहीं होगा तो अपने एवं अपने परिवार के सपने पूरे करने में बहुत मुश्किल आनी तय है..
मानसिक अवस्था अच्छी रहे उसके लिए हमें उच्च वैचारिक चिंतन मनन.. अच्छे और सच्चे महापुरुषों का सानिध्य .. आशावादी सोच एवं सकारात्मक नज़रिए की उचित व्यवस्था रखनी होगी..
यदि सानिध्य उचक्कों का या निराशावादी लोगों का रखेंगे तो मानसिक रूप से पंगु होना निश्चित है..
और अंत में
सामाजिक अवस्था अर्थात वो अवस्था जिससे हमारे व्यक्तित्व की पहचान होती है.. शारीरिक, आर्थिक एवं मानसिक अवस्था हमारी व्यक्तिगत अवस्थाओं का संकलन है किन्तु सामाजिक अवस्था हमारे व्यक्तित्व के द्वारा समाज में दिए गए योगदान का आंकलन है..
व्यक्ति.. समाज .. देश.. एवं दुनिया के प्रगति एवं उत्थान के लिए किए गए हमारे कार्य एवं सहयोग की व्यवस्था ही इस अवस्था को सुचारू एवं सुदृढ कर पाने में समर्थ होती है..
यदि आपका नाम आपके सम्मुख अथवा आपकी गैर मौजूदगी पर भी सम्मान से लिया जाता है तो यह निश्चित मान कर चलिए की आप सही एवं व्यवस्थित मार्ग पर हैं..
अतः. विचारणीय ये है कि किसी भी एक अवस्था कि व्यवस्था यदि कमजोर अथवा ढीली रही तो संपूर्ण व्यक्तित्व की दशा डांवाडोल हो जाएगी..
स्वयं के कल्याण के साथ साथ जगत कल्याण के स्वप्न को पूरित करने हेतु यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपनी व्यवस्थाओं पर मंथन करें ..
ये सर्वविदित है कि इंसान हो अथवा संसार का कोई भी जीव वो अपनी हालत, दशा, स्थिति या अवस्था का स्वयं जिम्मेदार होता है..
बेहतर है तो और बेहतर करने के लिए अथवा बदतर है तो उसे भी बेहतर करने के लिए जीवन में अपने द्वारा किए जा रहे तरीकों..ढंग .. प्रबंध एवं व्यवस्थाओं पर पुनः विचार करना कल्याणकारी होगा..
इसलिए अपनी वर्तमान स्थिति के लिए किसी अन्य को दोष देने से पूर्व स्वयं पर विचार अवश्य करें.. निश्चित रूप से उचित हल निकलेगा..
ध्यान रहे उचित अवस्था के लिए जरूरी है कि व्यवस्था भी हमारी हो और व्यवस्थापक भी हम ही हों.. किसी अन्य का हस्तक्षेप और उससे आस अव्यवस्थाओं का हेतु है.. अर्थात
ना अपेक्षा ना उपेक्षा..
जय हो..🙏😇💐
संजयपुरोहित#…
Writer, Actor, Singer…. not only Sanjay Purohit is proficient in his key skills but also passionate about them. 20 years of theatrical journey, facing camera for daily soaps & his signature moves in song albums has gifted him with many creative experiences, but his passion inclines more towards Writing. Being a Deep Thinker by nature, writing comes to him easily. Evolved thinking about various subjects has influenced his Analytical & Logical Writing. His work extends but is not limited to Song Writing, Movie Scripts, Theatre Acts, Rewriting Devotional Stories(Katha) for the 21st century, and Articles/Blogs on Serious Subject Matters as well as Witty Political ones. Sanjay Purohit will not leave any stone unturned when it comes to accomplished writing on any given subject. We hope you savor his creations as much as he relishes creating them!
बहुत सही कहा आपने बिना किसी को दोष देते हुए और अपेक्षा रखते हुए हमारी स्वयं की उपरोक्त चारों व्यवस्थाओं पर ध्यान देने , चिन्तन,मनन करने की आवश्यकता है हमे …🙏💐💐🙌🙌 बहुत बहुत धन्यवाद इतने कीमती विचार साझा करने के लिए🙏🙏