ये लेखक कई प्रजाति के होते हैं…
जिस तरह बिन मौसम बरसात में छिपे हुए मेंढक अचानक खुले में आकर टर्राने लगते हैं,
कुछ इतने परेशान के संसार के किसी भी कोने में कुछ हो गया हो ये दुनिया भर को कोसना शुरू कर देते हैं..
जैसे की इन्हीं को सारी चिंताएं है पर खुद की चप्पल तीन दिन से टूटी हुई है वो इनसे नहीं बनवाई जाती ..
कुछ अपने पूर्वाग्रहों से उपजे बासी खाने को अपने लेखों के ज़रिए इस चेहरे की किताब पर परोसते रहते हैं .. चाहे सामने वाले कै करते रहें इनकी बला से..
#Writers of Facebook
कुछ राजनैतिक गिद्ध स्वाहापुरुष लेखक ( कृपया सिद्ध महापुरुष पढ़ें) नेताओं पर ऐसे बाण छोड़ते हैं जैसे की ये तो राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत होकर आए हैं..
कुल मिलाकर सब अपनी अपनी ओपिनियन इस तरह थोपते हैं की या तो आपको इनकी सोच स्वीकारनी पड़ेगी,
इनकी बात माननी ही पड़ेगी या फिर आप घटिया मानसिकता के लोग हैं इनकी नज़र में..
जैसे ही कोई मुद्दा सोशल मीडिया पर उछलता है
वैसे ही ये महाहटी (महारथी) लोग उस मुद्दे को जॉन्टी रोड्स Jonty Rhodes से भी ज़्यादा कुशलता से लपक लेते हैं
और लपकने के बाद उस मुद्दे को तब तक नोचते खसोटते रहते हैं जब तक की वो तार तार ना हो जाए ..
कुछ पारखी मित्र अभी यही सोच रहे होंगे की आप कौनसा तीर मार रहे हो भाई
आप भी तो वही कर रहे हो.. 😅
जी हां कर तो रहा हूं पर थोड़ा वक्त दें कृपया मुझे आगे की बात के लिए..🙏
यहां मैं बहुत से अनुभवी और अच्छे लेखकों को पढ़ता हूं ..
किंतु अधिकतर पर मैं अपना रिएक्शन नहीं दे पाता क्योंकि वे कुछ बता नहीं रहे होते
बल्कि थोप रहे होते हैं की मुद्दा ये है और इसका आंकलन ये ही है जो मैंने निकाला है
फलां जी और ढिमका जी
अब यहां ये अकेले तो हैं नहीं महाहटी (महारथी) .. और भी हैं..
कुछ स्वयं पहुंच जाते हैं तो कुछ को अन्य मित्रों के द्वारा टेर लगाई जाती है बकायदा टैग की प्रथा से..
तो वो पहुंच जाते हैं इनके दरबार में हाज़िरी लगाने फलां चंद जी हाज़िर होओओ ..
और ये लो साहब फलां चंद जी धमक गए ढिमका जी की दीवार( wall ) पर और हो गए शुरू मुर्गे लड़ाने..
फलां जी और ढिमका जी के अय्यार याने के समर्थक भी अपने अपने हथियार (गाली गलौज) पर धार लगाकर पहुंच जाते हैं रण क्षेत्र में..
और शुरू होता है मुद्दे का हलवा वो भी कड़वे स्वाद का ..
अब जो इत्मीनान से कभी कभार आते हैं …
उनको ये सब देख पढ़कर अचंभा होता है और वे मन ही मन सोचते हैं की आप तो ऐसे न थे ये कैसे हुआ ..
अरे भाईसाब राजनीति क्या ना करा दे घर में लड़ाई करा दे…
ये तो फिर सोशल मीडिया (social media) के प्राणी है .. (writers of facebook)
ख़ालिस लेखक – Authentic writer
किंतु यहां भी हैं बेहतरीन सोच और समझ के साथ ही उच्च कोटि की इच्छाशक्ति रखने वाले ख़ालिस लेखक जिनमें मैं सबसे अग्रणी रखता हूं श्रेष्ठ श्री आशुतोष राणा Ashutosh Rana जी को 🙏
श्रेष्ठ हर विषय पर लिखते हैं
किंतु उन्हें एवं उनके लेखन को समझ पाना हम जैसों के लिए दूर की कौड़ी है.. क्यों है ?
क्योंकि वे समस्या पर नहीं बल्कि उसके समाधान पर चिंतन करते और करवाते हैं
उनके लेखन में एक बहुत ही बारीक अंतर होता है
वो ये कि ना किसी के पक्ष में ना विरोध में
बल्कि वो उस मुद्दे को ही हम सबके समक्ष रख देते हैं एक पॉजिटिव और उजले पहलू के साथ
यदि वे कोयले के विषय पर भी कुछ लिखें तो पाठकों को वो भी उजला दिखने लगेगा स्याह या धूमिल (काला रंग) नहीं ..
उनके बारे में कहने का ये कतई तात्पर्य नहीं है कि मैं विज्ञापन (advertise) कर रहा हूं
(सूरज को दिया दिखाने की हिमाकत के लिए सोचा भी नहीं जा सकता)
सिर्फ़ इतना कहना है…
सिर्फ़ इतना कहना है की जब भी हम किसी विषय या मुद्दे पर लिखें तो अपनी राय थोपें नहीं
बल्कि लोगों को निर्णय लेने दें कि वे क्या सोचते और कहते हैं
आप बस अपना नज़रिया ज़ाहिर कर दें
पर हर किसी के साथ तू तू मैं मैं करना बुरा भला कहना वो भी अपनी खुदकी वॉल पर शोभा नहीं देता ..
हज़ारों फॉलोअर्स हैं आप लोगों के और उसके बाद इस तरह की स्थिति होना बहुत गंभीर हैं
अतः ऐसा ना हो की मुद्दों को उछालने और अपने पक्ष को ऊपर रखने के फेर में
आप कहीं स्वयं नीचे रसातल में पहुंच जाएं.. ”
और आपके पाठक ये सोचें की “मैंने बहुत इत्मीनान से देखा उन्हें अपनी नज़रों से गिरते हुए”
थोड़ा सा रुक जाइए,
ट्रैफिक लाइट्स में सबसे इग्नोर लाइट पीली वाली है
किंतु सबसे ज़रूरी वही है की दाएं बाएं देख लीजिये संभल लीजिए
रुकना और चलना तो आजीवन है ही पर ध्यान देना संभलना और संभालना ही जीवन है 🙏💐
चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएं कैसे..
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएं कैसे..
कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा..
एक कतरे को समुंदर नज़र आए कैसे..
(बरेलवी जी)
यहां मैं कतरा हो सकता हूं की आप लेखकों (wrtiers of facebook) को नहीं समझ पाया..
पर ये कतई नहीं चाहूंगा कि आप कतरा बने समुंदर बने रहें कृपया 🙏💐😊
संजय_पुरोहित
Writer, Actor, Singer…. not only Sanjay Purohit is proficient in his key skills but also passionate about them. 20 years of theatrical journey, facing camera for daily soaps & his signature moves in song albums has gifted him with many creative experiences, but his passion inclines more towards Writing. Being a Deep Thinker by nature, writing comes to him easily. Evolved thinking about various subjects has influenced his Analytical & Logical Writing. His work extends but is not limited to Song Writing, Movie Scripts, Theatre Acts, Rewriting Devotional Stories(Katha) for the 21st century, and Articles/Blogs on Serious Subject Matters as well as Witty Political ones. Sanjay Purohit will not leave any stone unturned when it comes to accomplished writing on any given subject. We hope you savor his creations as much as he relishes creating them!
सत्य लिखा👌👌👌👌👌