ट्रेन से उतरते समय भीड़ में धक्का लगने की वजह से शेखर का एक पैर कट गया।
बेहोशी की हालत में जब उसे अस्पताल लाया गया तो परिवार, मित्रों व रिश्तेदारों का दुःख से बुरा हाल था।
ऑपरेशन के बाद उसके होश में आते ही सांत्वना देते हुए किसी हितैषी ने कहा बहुत बुरा हुआ बेटा तुम्हारे साथ ..
उसने कराहते हुए पूछा क्यूँ क्या हुआ..?
फ़िर उसे कुछ महसूस हुआ जिसे सोचकर ही वो सिहर गया….क्या हुआ मेरे पैर….???
चादर हटाते ही देखा तो एक पैर में घुटने से नीचे कोई हलचल नहीं …..वह बिल्कुल शांत सा हो गया… एकदम शून्य में चल गया हो जैसे…
यह दृश्य देख कमरे में उपस्थित सभी लोग रोने पीटने लगे एवं भगवान को कोसने लगे कि उसने ये दिन दिखाया।(ऐसे वक्त में वही है जिसे हम अज्ञानी कोसते हैं)
वहां घोर निराशा पूर्ण व नकारात्मक माहौल बन चुका था… की अचानक किसी की हंसी ने गमगीन माहौल को चीरने की कोशिश की …कौन बेवकूफ हँस रहा है इस वक़्त !…(किसी ने कहा) देखा तो वो शेखर खुद ही था…
ओह्ह … ज़रूर इसके दिमाग पर असर हुआ है यह बरदाश्त नहीं कर पाया इस अपूर्ण क्षति को औऱ शायद दिमागी सन्तुलन खो बैठा है…हे भगवान ये क्या हो रहा है हमारे साथ …मेरे ही बेटे के साथ ऐसा क्यूँ हुआ??(अर्थात किसी और के साथ हो जाये तो हमें कोई परेशानी नहीं है)
शेखर ने सभी को चुप हो जाने का इशारा किया और कहने लगा मेरा दिमागी सन्तुलन दुरुस्त है….दोबारा चादर हटाकर बोला ये देखिए मेरा एक पैर आधा हो गया है …किन्तु ज़रा दूसरे को तो देखिए एक दम स्वस्थ है… पहले की ही तरह… इसने मेरा साथ नहीं छोड़ा है …तो जिसने साथ छोड़ दिया उसके लिए रोने से अच्छा है कि जो मेरे साथ है उसके लिए खुश हुआ जाए… बस में वही कर रहा हूँ।
मैं जीवित हूँ ..क्या यह कोई कम बात है भगवान को शुक्रिया कहने के लिए।
छोड़िए सब ये रोना धोना औऱ खुश हो जाइए क्योंकी भगवान ने यदि मुझे नवजीवन दिया है तो अवश्य ही उसने मेरे लिए कुछ अच्छा सोचा है।
ये क्या हुआ ?…
(सभी विस्मय से एक दूसरे को देखकर झेंपने से लगे … ये क्या हो रहा है.. ऐसा थोड़े ही होता है.. हम तो दुःख बांटने आये थे किंतु यहाँ तो खेल ही कुछ और चल रहा है … जहाँ दुखी होना चाहिए वहां ऐसी सकारात्मक बातें भी कोई करता है भला … भई हमने तो आजतक ऐसा ना देखा ना सुना… यह तो नाइंसाफी है… हमारी सांत्वना का कोई महत्व ही नहीं रहा।सारा कामधाम छोड़कर क्या यह ज्ञान की बातें सुनने आये थे हम यहां ? (“इस दृश्य को गहरे से समझने की आवश्यकता है हमें शायद”)
अचानक से सब कुछ अच्छा सा व सकारात्मक सा हो गया एक पल में सब का दुःख (जो कि किसी कमतरी के आभास से ज़्यादा था) जैसे लुप्त सा हो गया और जो इंसान सबसे अधिक निराश हो सकता था उसी ने सबमें एक नई आशा का संचार सा कर दिया था।
वाह शेखर …शाबास…काश हर शख्स तुमसा सकारात्मक व मजबूत हो।
संजय पुरोहित
जय हो🙏🙏😇😇💐💐
Writer, Actor, Singer…. not only Sanjay Purohit is proficient in his key skills but also passionate about them. 20 years of theatrical journey, facing camera for daily soaps & his signature moves in song albums has gifted him with many creative experiences, but his passion inclines more towards Writing. Being a Deep Thinker by nature, writing comes to him easily. Evolved thinking about various subjects has influenced his Analytical & Logical Writing. His work extends but is not limited to Song Writing, Movie Scripts, Theatre Acts, Rewriting Devotional Stories(Katha) for the 21st century, and Articles/Blogs on Serious Subject Matters as well as Witty Political ones. Sanjay Purohit will not leave any stone unturned when it comes to accomplished writing on any given subject. We hope you savor his creations as much as he relishes creating them!