आजकल सोशल मीडिया पर लगभग सब लोग अपने अपने नेताओं एवं पार्टियों के प्रचार प्रसार में लगे हुए हैं..
किंतु उनके प्रचार के तरीकों ने मुझे अपने साथ हुई कुछ वर्ष पूर्व की एक घटना याद दिला दी.. पहले मैं आपको वह घटना बताता हूं..
देश के अग्रणी किंतु आत्ममुग्ध प्रमुख समाचार पत्र ने कुछ वर्ष पहले एक मुहिम शुरू की थी..
जिसे उनके अनुसार सभी लोगों के द्वारा बहुत सराहा गया था.. और उस दिन उनके दफ्तर में उस मुहिम हेतु बहुत से बधाई सन्देश आए..
मैं भी नित्य की तरह सुबह उठा और जैसे ही समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ को देखा तो मेरा मन विचलित हो गया..
पहली बात तो ये की यदि मुख्य पृष्ठ पर खबरों के स्थान पर विज्ञापन देखता हूं तो वैसे ही उस पृष्ठ का मज़ा किरकिरा हो जाता है.. और यदि उस पर ऐसा कुछ लिखा हो तो कहने ही क्या.. जो उस दिन लिखा था..
तो मुहिम थी “नो नेगेटिव मंडे..
अहा.. क्या खूब वन लाईनर है.. हैं ना..
अब मुहिम का कारण तो प्रेरित करने वाला था.. और यह भी तय था कि यह निश्चित ही एक अच्छी पहल थी.. किंतु इसको जिस तरह से प्रदर्शित किया तथा जिस तरह जनता तक पहुंचाया गया वहां ये आत्ममुग्ध बुद्धिजीवी मात खा गए..
उस दिन उनके ऑफिस में एक फ़ोन बजा जो कि मैंने किया था उधर से एक महिला ने फ़ोन उठाया और मैं कुछ कहूं उससे पहले ही उन्होंने बहुत ही आश्वस्त एवं विश्वसनीयता से पूर्ण हंसी के साथ मुझे धन्यवाद प्रेषित कर दिया.. गोया की मैं भी शायद बधाई एवं शुभकामनाएं ही देने के लिए फोन कर रहा हूं..
पहले ही धन्यवाद सुनकर मैं इस संतुष्टि के भाव से लगभग भर गया कि सामने वाली अति विश्वास के आसमान में विचरण कर रही है .. अतः मेरी बात सुनकर शायद वह इस धरा पर उतर पाए और मुझे एवं मेरी जिज्ञासा को शायद अच्छे से शांत कर सके..
तो धन्यवाद सुनते ही मैंने कहा जी नमस्ते सुप्रभात.. मेरा नाम संजय है और मुझे आपके समाचार पत्र की आजकी मुहिम पर कुछ बात करनी है.. तो कृपया आप मेरी बात किसी ज़िम्मेदार पर्सन से करा सकती हैं..
महिला ने फिर छूटते ही कहा जी यहां हम सब ही ज़िम्मेदार हैं इसीलिए तो देश में नंबर वन है आप बेझिझक बात करिए मैं हूं ना .. आज तो सुबह से बधाईयां ही मिल रही हैं.. सभी पाठकों से.. ये अभियान जितना सोचा उससे अधिक सफल हुआ लग रहा है..
मैंने बीच में उनकी बात काटते हुए किन्तु उनके विश्वसनीय जज्बे को देखकर कहा मोहतरमा क्या आप मेरी बात भी सुनेंगी..
तो वे अपने पूर्वाग्रह से लगभग मुक्त होते हुए बोलीं हां हां कहिए प्लीज़.. क्या कहना है आपको..
मैंने कहा क्या आपने आजका न्यूज़ पेपर पढ़ा है.. खासकर मुख्य पृष्ठ..?
वे बोलीं हां बिल्कुल पढ़ा है .. बल्कि ये तो रहा मेरे सामने.. डेस्क पर ही रखा है.. “नो नेगेटिव मंडे.. पढ़ते हुए उन्होंने कहा..
मैंने कहा जी हां वही मैं पूछना चाहता हूं कि इस पंक्ति का क्या अर्थ है..?
एवं
ये मुहिम क्या है..?
वे तुरंत बोली अरे इसका अर्थ है सोमवार नकारात्मक नहीं.. और नकारात्मकता को समाप्त या कम करने के लिए ही हमारी ओर से ये पहल की गई है..
मैंने कहा अब मैं जो आपसे बात करूंगा तो उसके दरमियान आप तरबूज को याद मत करना..
तो वो चौंकते हुए बोली क्या मतलब..?
मैंने फिर वही लाईन दोहरा दी..
तो वो बोली पर तरबूज तो वैसे भी मुझे दूर दूर तक याद नहीं था ये तो आप ही ने बोलकर मुझे तरबूज याद दिलाया है..
तो मैंने कहा जिस तरह आपको तरबूज याद नहीं था उसी तरह मुझे भी नकारात्मकता (नेगेटिव) शब्द याद नहीं था पर आपके समाचार पत्र ने मुझे ये शब्द याद दिलाया है.. सुबह उठते ही.. वो भी एक बार नहीं इस पृष्ठ पर यह शब्द 8 बार लिखा गया है.. और जिस वजह से आपने ये शब्द इस्तेमाल किया है वो शब्द सिर्फ एक बार लिखा गया है जो है पॉजिटिव..
तो अब आप बताइए कि जिसे वास्तव में प्रचारित करना चाहिए था वह सोच एवं शब्द कहीं नहीं है और जिसे हमें समाप्त करना है वही बार बार लिखा जा रहा है..
“पॉजिटिव मंडे.. क्या ये पंक्ति ज़्यादा सुकून नहीं दे रही..
अब तक जो चहकती हुई सी आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी वो थोड़ी लड़खड़ाती सी लगने लगी..
ज..जी वो.. हां.. बात तो..आपकी .. सही है.. पर.. वो क्या है कि ये सब निर्णय तो बड़े लेवल पर लिए जाते हैं.. बहुत लोगों की मेहनत और दिमाग लगता है.. तो कुछ सोचकर ही उन्होंने ये पंच लाइन दी होगी..
पर मुझे व्यक्तिगत रूप से आपकी लाईन ज़्यादा उचित लग रही है..
मैंने कहा जी अब आपका बहुत बहुत धन्यवाद .. मेरी बात सुनने समझने एवं मानने के लिए.. आपका नाम।क्या है ..
ज.. जी नाम बस इतना बोलकर उन्होंने फोन काट दिया.. और मेरे कानों में अब सिर्फ टूं..टूं..टूं .. की आवाज़ ही आ रही थी..
उस महिला की मजबूरी को समझते हुए मैं भी आगे की खबरें पढ़ने में मशगूल हो गया.. किंतु गाहे बागाहे जब ऐसा कुछ मेरे सामने घटित होता है तो मुझे वह बात अक्सर याद आ जाती है..
हमें किसी इंसान के .. नेता के.. पार्टी के.. अथवा विचारों के विरोध में खड़े होने से अच्छा है कि हम जो वास्तव में चाहते हैं उसके पक्ष में खड़े हो जाएं..
किंतु आजकल पार्टियां और नेता ही नहीं बल्कि हम लोग भी खुदको अच्छा साबित करके नहीं अपितु सामने वाले को बुरा साबित करने में ही अपनी ऊर्जा एवं समय नष्ट कर रहे हैं.. और आपसी पसंद नापसंद में प्रेम एवं मित्रता में बैर पैदा कर रहे हैं..
जबकि होना ये चाहिए की विरोध की जगह समर्थन की बात हो.. विपक्ष की जगह पक्ष की बात हो.. बुरे की जगह अच्छे की बात हो.. एवं झूठ की जगह सत्य की बात हो..
एक बार खुदका समर्थन करके देखें हो सकता है किसी का विरोध करने की आवश्यकता ही नहीं पड़े..
जय हो🙏🙏💐💐
संजय पुरोहित..
Writer, Actor, Singer…. not only Sanjay Purohit is proficient in his key skills but also passionate about them. 20 years of theatrical journey, facing camera for daily soaps & his signature moves in song albums has gifted him with many creative experiences, but his passion inclines more towards Writing. Being a Deep Thinker by nature, writing comes to him easily. Evolved thinking about various subjects has influenced his Analytical & Logical Writing. His work extends but is not limited to Song Writing, Movie Scripts, Theatre Acts, Rewriting Devotional Stories(Katha) for the 21st century, and Articles/Blogs on Serious Subject Matters as well as Witty Political ones. Sanjay Purohit will not leave any stone unturned when it comes to accomplished writing on any given subject. We hope you savor his creations as much as he relishes creating them!