यदि सिर्फ अच्छा ही रहे तो कुछ सदियों के बाद वो अच्छा कैसे माना जाएगा..क्योंकि अच्छा शब्द तो बुरे की वजह से है और यदि वजह ही नहीं रहे तो फिर वो अच्छा ना होके क्या माना जाएगा..?
राज, नीति, सन, मती, अति, गति, इन्हीं में प्रगति भी है, स्वराज भी है, तो मां भारती भी है .. अतः ये हमें अपने स्वविवेक से तय करना होगा कि सुंदर व सार्थक राज्य के लिए नीति को राज के स्थान पर गति से जोड़ें एवं नीतिगत कार्य करें..
अब तक हुए मेलों की नाकामी को देखते हुए नेताजी ने इस बार अपनी कुटिल बुद्धि से पूरे शहर में एक घोषणा करवा दी.. घोषणा थी कि..”पांच रुपए में अच्छी नस्ल का घोड़ा जीतिए”…आगे पढ़िए
किंतु उसका इतने दर्दनाक और अमानवीय हश्र में परिणित होना हमें अंदर तक झकझोरने के साथ ही ये भी सोचने पर मजबूर करता है कि हम वास्तव में किस दिशा में जा रहे हैं.. आगे पढ़िए
मैंने बीच में उनकी बात काटते हुए किन्तु उनके विश्वसनीय जज्बे को देखकर कहा मोहतरमा क्या आप मेरी बात भी सुनेंगी.. तो वे अपने पूर्वाग्रह से लगभग मुक्त होते हुए बोलीं हां हां कहिए प्लीज़.. क्या कहना है आपको.. मैंने कहा क्या आपने आजका न्यूज़ पेपर पढ़ा है.. खासकर मुख्य पृष्ठ..? …आगे पढ़िए
मुझे ये पूर्ण विश्वास है कि हम सभी लोग इन सब बातों को भलीभांति जानते समझते हैं.. मैं कोई प्रथम इंसान नहीं हूं जो ये सब कह रहा हूं.. किंतु फिर भी हम इन्हें अप्लाई नहीं करते .. यदि करते भी हैं तो ना के बराबर..