यदि सिर्फ अच्छा ही रहे तो कुछ सदियों के बाद वो अच्छा कैसे माना जाएगा..क्योंकि अच्छा शब्द तो बुरे की वजह से है और यदि वजह ही नहीं रहे तो फिर वो अच्छा ना होके क्या माना जाएगा..?
किंतु उसका इतने दर्दनाक और अमानवीय हश्र में परिणित होना हमें अंदर तक झकझोरने के साथ ही ये भी सोचने पर मजबूर करता है कि हम वास्तव में किस दिशा में जा रहे हैं.. आगे पढ़िए
मैंने बीच में उनकी बात काटते हुए किन्तु उनके विश्वसनीय जज्बे को देखकर कहा मोहतरमा क्या आप मेरी बात भी सुनेंगी.. तो वे अपने पूर्वाग्रह से लगभग मुक्त होते हुए बोलीं हां हां कहिए प्लीज़.. क्या कहना है आपको.. मैंने कहा क्या आपने आजका न्यूज़ पेपर पढ़ा है.. खासकर मुख्य पृष्ठ..? …आगे पढ़िए
मुझे ये पूर्ण विश्वास है कि हम सभी लोग इन सब बातों को भलीभांति जानते समझते हैं.. मैं कोई प्रथम इंसान नहीं हूं जो ये सब कह रहा हूं.. किंतु फिर भी हम इन्हें अप्लाई नहीं करते .. यदि करते भी हैं तो ना के बराबर..
… हमारी सांत्वना का कोई महत्व ही नहीं रहा।सारा कामधाम छोड़कर क्या यह ज्ञान की बातें सुनने आये थे हम यहां ? (“इस दृश्य को गहरे से समझने की आवश्यकता है हमें शायद”)
हम दुखी क्यों हैं..?उपरोक्त कथन हर इंसान अपने जीवन में कभी न कभी अवश्य महसूस करता है..सभी को कोई दुःख तो होता ही है..अब किसको कितना दुःख है इसका आंकलन कौन व कैसे करे..?जैसे कि एक व्यक्ति को हाथ में फ्रेक्चर हो गया तो वह दुःखी हो जाता है कि मेरे साथ ही ऐसा क्यूं…